written by Suman Vashisht Bharadwaj
मैं जिंदगी अपनी बहुत दूर छोड़ आया!
दिल में बसता है वो मेरे,मैं उसका ये भ्रम भी तोड़ आया!
मैं उसके शहर के सारे रास्तों से भी मुंह मोड़ आया!
और बेवफाई के सारे इल्जाम मैं उसी के नाम छोड़ाया!
दे के जुदाई का गम मैं खुदको उसके दामन से सारे कांटे बटोर लाया!
और मुस्कुरा के जीने का फलसफा तो बस मैं उसी के पास छोड़ आया!
दर्दे दिल मेरा उसकी खुशी से बढ़कर तो नहीं!
इसलिए मैं उसको उसकी खुशी के साथ छोड़ आया!
उसको अब तक भ्रम है कि दिल मैं उसका तोड़ आया!
उसको क्या मालूम कि क्या मैं अपने साथ लाया!
और क्या उसके पास छोड़ आया!
हां मैं अपनी जिंदगी से ही अब मुंह मोड़ आया!
मैं जिंदगी अपनी बहुत दूर छोड़ आया!
very niece
LikeLiked by 1 person
very very good
LikeLiked by 1 person
too good
LikeLiked by 1 person
very very very nice
LikeLiked by 1 person