दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार और उपराज्यपाल के बीच काफी लंबे समय से चल रही जंग के बीच आज सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपराज्यपाल दिल्ली में फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, एलजी को कैबिनेट की सलाह के अनुसार ही काम करना होगा. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना मुमकिन नहीं है.
जानिए क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता. भूमि, पुलिस, लॉ एंड ऑर्डर दिल्ली सरकार के दायरे में नहीं है. लेकिन बाकि मामले में सरकार को कानून बनाने की इजाजत है. उन्होंने कहा कि कैबिनेट सभी मामलों की जानकारी उपराज्यपाल को दे. उपराज्यपाल के पास फैसला लेने का कोई हक नहीं है. फैसले में यह भी कहा गया कि उपराज्यपाल सभी मामलों को राष्ट्रपति को नहीं भेजेंगे. राष्ट्रपति के पास भेजने से पहले एलजी अपने विवेक का इस्तेमाल करें.
दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने उपराज्यपाल को दिल्ली का प्रशासनिक मुखिया घोषित करने के हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. याचिका में दिल्ली की चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल के अधिकार स्पष्ट करने का आग्रह किया गया था. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एमएम खानविल्कर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से पेश दिग्गज वकीलों की चार सप्ताह तक दलीलें सुनने के बाद गत छह दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख था
इस मामले में दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम, पी. चिदंबरम, राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह और शेखर नाफड़े ने बहस की थी जबकि एडीशनल सालिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने केन्द्र सरकार का पक्ष रखा था.